इस
बहाने मगर देख ली दुनिया हमने…
कितना
मुश्किल है। जिसकी जिन्दगी के पन्नों पर आप लिखने जा रहे है, वह आपसे बात ही ना करे। और उसकी
जिन्दगी के पन्नों को जिसने संवारा हो, उससे
भी आपकी कोई बात ना हो। फिर भी आप लिखे जा रहे हैं। पहले से कहे-लिखे गये पन्नों
को अपनी दृश्टि से नये पन्नो पर उकेर रहे हैं और पढ़ने वाले पढ़े जा रहे हैं। तो
ये किताब की सफलता है या फिर उस शख्स की जिसने अपनी जिन्दगी की अहमियत को जब समझा, अपने वजूद का एहसास नये रुप में किया
तो खुद को कुछ इस तरह ढक लिया कि आजभी उस शख्स को देखते ही बहुतेरी अनकही कहानियां
दिलो– दिमाग में ही जाती है । और उसके बारे में और जानने की
चाहत चाहे अनचाहे उसके बारे में लिखे कुछ भी शब्दो में मायने खोजने को मजबूर करती
है। जी, उस शख्स का नाम है रेखा। किताब का नाम
है रेखा। भगवती चरण वर्मा का उपन्यास रेखा नहीं। बल्कि फिल्म अदाकारा रेखा पर लिखी
गई यासिर उस्मान की पुस्तक रेखा। जिसने मना कर दिया कि उसपर लिखी जा रही किताब पर
वह कुछ नहीं कहेंगी। जिसकी जिन्दगी में आये तीन शख्स। विनोद मेहरा । किरण कुमार ।
अमिताभ बच्चन। इनसे भी कोई बात इस किताब को लिखने के दौर में नहीं हुई। और जिस
शख्स से विवाह फिर तलाक हुआ, उस
शख्स मुकेश अग्रवाल के साथ बिताये बेहद कम दिनो के दौर को लिखते वक्त ही लेखक को
हकीकत की जमीन मिली। कयोंकि किताब चाहे रेखा पर हो लेकिन मुकेश अग्रवाल से रेखा ने
शादी क्यों कि और फिर शादी क्यों टूटी। उस दौर के किरदार जिन्दा भी हैं और दुनिया
के सामने कभी आये भी नहीं ये भी सच हैं। दिल्ली के पुलिस कमिश्नर रहे नीरज कुमार।
बीना रमानी और सुरेन्द्र कौर। तीनों की मौजूदगी । तीनो की रजामंदी । तीनो ने ही उस
दौर को देखा ही नहीं बल्कि उन हालातो में बराबर का सहयोग दिया जिसके बाद मुकेश
अग्रवाल और रेखा की शादी हुई ।
लेकिन
रेखा की जिन्दगी वाकई अनकहे सच को टटोलने की दिसा में बढते कदमो से ज्यादा कुछ
नहीं । तो हर शब्द सस्पेंस की घुट्टी में डुबोने का प्रयास होगा। इससे इंकार कौन
कर सकता है । मसलन मुकेश अग्रवाल ने खुदकुशी उसी दुप्पटे को गले में बांध कर की जो
रेखा का प्रिय दुपट्टा था । तो किताब मुकेश अग्रवाल की जिन्दगी से शुरु होती है ।
और मुकेश की जिन्दगी पर पडे रेखा के तिलिस्म को धीरे धीरे उठाती है। और रेखा के
बारे में एक सोच बनाने को मजबूर करती है । जाहिर है रेखा से कोई बात नहीं तो रेखा
को चाहने वाले यासर उस्मान के शब्दो पर भरोसा भी कितना करें । लेकिन स्टारडस्ट से
लेकर सिमी ग्रेवाल को दिये इंटरव्यू । 70 के
दशक में मीडिया के सामने रेखा के बेलौस बयान । और जया भादुडी से लेकर जया बच्चन
बनने के दौर में रेखा की दीदीभाई यानी जया से दोस्ती से लेकर दूरिय़ॉ बनाने-बनने
की नकही दास्तन को अपने नजरिये से जिस तरह लेखक ने पन्नों पर उकेरा वह किसी
सिनेमायी स्क्रिप्ट से ज्यादा नही तो कम भी नहीं है । क्योंकि जब लेखक से कोई
संवाद किसी का नहीं है तो पढने वाले को लेखक की समझ या उसके दिमाग में चल रहे
ताने-बाने के भरोसे ही चलना होगा । लेकिन दिलचस्प है रेखा के उन अनझुये पहलुओ को
जानना जिसे रेखा खुद कभी जुबां पर ला नहीं पायी ।
कौन
जानता है कि जया और रेखा दोनों ही जुहु
अपार्टमेंट में रहते थे । कितनों को पता है कि जया को रेखा ने बहन मान कर
बेहतीन सुझाव देने वाला माना। लेकिन अमिताभ बच्चन से शादी हुई तो जया ने रेखा को
निमंत्रण तक नहीं दिया। कितनों को पता है कि रेखा का अमिताभ बच्चन को लेकर आकर्षण
काम के प्रति अमिताभ की प्रतिबद्दता और अनुशासन को लेकर हुआ। फिल्म दो अनजाने की
कलकत्ता में शूटिंग के वक्त ही अमिताभ ने अपने पुराने शहर को जीने निकले तो साथ
संवाद बनाने के लिये सहयोगी अदाकारा रेखा ही थीं, जो कलकत्ता शहर से अनजान थी। तो संवाद बना । और कितनों को मालूम है
कि अमिताभ-रेखा की सिनेमायी पर्दे पर कैमेस्ट्री से गुस्सायी जया ने रेखा के साथ
अमिताभ का काम मुकद्दर का सिंदर के बाद बंद तो करवा दिया । लेकिन फिल्म सिलसिला
में महज एक डॉयल़ॉग या कहें फिल्म के आखिरी सीन ने जया बच्चन सिलसिला में काम करने
पर हामी भरवा दी। वह भी फिल्म की आखिरी सीन/डॉयलॉग, ‘ जया अस्पताल के बेड पर बेहोश लेटी है। डाक्टर-नर्स उसमें जान देने की
कोशिश कर रहे है । तभी अमिताभ बच्चन ह़ॉस्पीटल पहुंचे है । कमरे से सभी को बाहर
जाने के लिये कहते है और जया का ठंडा पड़ता हाथ अपनी हर्म हथेलियो में लेकर कहते
है…शोभा मै वापस आ गया हूं..हमेशा के लिये
…और जया धीरे धीरे आंखे खोल कमजोर जुबां
से कहती है …मैं जानती थी..तुम वापस जरुर आओगे……और यहां प्यार पर विश्वास की जीत होती
है । क्योंकि समूची फिल्म में जब रेखा और जया टकराते है तो संवाद रेखा के इसी
डॉयलॉग पर आकर ठहरता है कि….आप अपने विश्वास के साथ रहिये, मुझे मेरे प्यार के साथ रहने
दीजिये। ‘ कितने धूप-छांव रेखा की जिन्दगी में कब कैसे टकराये इन हालातो को
पढने वाला किताब के रेफरेन्स से जोड कर समझ सकता है क्योकि किताब खुद को रेखा होने
से बचाती है । लेकिन रेखा को रेखा होने से नहीं बचा पाती। इसलिये जयपुर में महान
की शूटिंग के वक्त रेखा को लेकर कमेंट करने पर एक फैन से ही अमिताभ का उलझना या
फिर फिल्म कुली में अमिताभ के घायल होने के बाद पुनीत के ये कहने पर, …..जिसकी सजा तुम हो मैंने वह गुनाह किया
है । इस पर रेखा का कमेट…और कितने गुनाह करेंगें आप ।
लेकिन
रेखा को बचपन से ना किसी ने संवारा । न किसी ने बचपन जीने दिया । तो किसी पहाडी
नदी की तरह रेखा जीवनदायनी नदी के तौर पर देखी भी नही गई । इसलिये जब अमिताभ कुली
की शूंटिग से गायल अस्पताल में जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहे थे । तब रेखा ने
अमिताभ के अमिताभ की मदद की सोच फिल्म उमराव-जान का प्रिमियर रखा । खुद ही सारे
निमंत्रण पर हस्ताक्षर किये । लेकिन फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं लोगों ने भी इसे अमिताभ
के हक में नहीं माना । और प्रीमियर “ डेड और स्टारलैस “
हो
गया । यूं रेखा की जिन्दगी
के पन्नो को सिनेमायी डॉयलॉग में खोजने की कोशिश बेमानी है । लेकिन लेखक ने ये
हिम्मत दिखायी है । मसलन….खून-पसीना कै डॉयलॉग…तेरा हुस्न मेरी ताकत,तेरी तेजी मेरी हिम्मत…इस संगम से जो औलाद पैदा होगी, वह औलाद नहीं फौलाद होगी । या फिर गीत….तु मेरा हो गया, मै तेरी हो गई….। विनोद मेहरा के साथ फिल्म घर । उसका
गीत…आपकी आंखो में कुछ……या आजतक प़ॉव जमीन पर नहीं पडते मेरे …। वैसे गुलजार ने रेखा की अदाकारी को
देख कर यही कहा.कि….वह उस किरदार को लिबास की तरह पहन लेती
है । शायद इसलिये मुज्जफरअली ने उमराव-जान बनने के बाद रेखा की जिन्दगी से गीत
जुडा है तो किसी ने ना नहीं कहा……. , जुस्त-जु
जिसकी थी उसको ना पाया हमने/इस तरह से मगर देख ली दुनिया हमने…..तो यासर उस्मान की किताब पढते पढ़ते
खत्म हो जाये तो भी ये कुलबुलाहट तो बची ही रहती है कि रेखा क्या कभी खुद के बारे
में खुलकर कुछ कह पायेगी…या फिर रेखा की नकही कहानी के नाम पर
ऐसी किताब ही छपेगी ।